ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी संस्कृतशास्त्र और उसके विविध आयामों पर केंद्रित थी।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने बताया कि संस्कृत केवल धार्मिक भाषा नहीं, बल्कि सभी शास्त्रों की मूलधारा है। इसके बिना आयुर्वेद, ज्योतिष, वेदांत और दर्शन जैसे विषयों को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
संस्कृत का ज्ञान किसी एक धर्म, जाति या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह मानवता की साझा धरोहर है और इसका विस्तार सभी वर्गों तक होना चाहिए।
वर्तमान समय में संस्कृत के माध्यम से विज्ञान, चिकित्सा और जीवनशैली जैसे विषयों की नई व्याख्या हो रही है। इसे शिक्षा प्रणाली में फिर से सशक्त रूप से स्थापित करने की ज़रूरत है।
उद्घाटन सत्र में स्मारिका विमोचन भी किया गया। विद्वानों ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार और इसे जन-जन तक पहुंचाने की अपील की।
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